आपबीती बयान करते हुए हाजी अजमेरी मलिक का गला कई दफा भर्रा जाता है. वे दिल्ली के दंगों पर कोंस्टिटयूशन क्लब में आयोजित किये गये पब्लिक ट्रिब्यूनल में बोल रहे थे. यहां मलिक जैसे 30 दंगा पीड़ित अपनी आपबीती सुनाने के लिए जुटे हुए थे.

घटना वाले दिन का जिक्र करते हुए हाजी मलिक कहते हैं-
“मैंने माहौल खराब होने के बाद भी 23 तारीख को दिन भर दुकान खोली थी लेकिन 24 को हालात ज्यादा खराब होने के काराण दुकान नहीं खोल पाया. थोड़ी देर बाद मोहल्ले के लोगों ने खबर दी कि दुकान में लूटपाट कर आग लगा दी गयी है. खबर सुनकर नमाज़ पढ़ रही उनकी पत्नी बेहोश हो गईं.”
अजमेरी के हाथ से रोजगार गया तो शिव विहार की रहने वाली रुख़साना के सिर से छत. दंगों को याद करते हुए वे फूट-फूट कर रोने लगती हैं. आंसुओं से सनी आवाज़ में कहती हैं-
“मेरे घर में दो एलपीजी सिलेंडर फोड़े गए. पूरे घर में आग लग गयी. हम लोग ऊपर वाली मंजिल पर थे. जैसे-तैसे जान बच पायी. नीचे की मंजिल पर जो था, सब राख हो गया. आग इतनी भयंकर थी कि दीवारों का पुराना रंग पहचानना मुश्किल हो गया है.”
ओल्ड मुस्तफाबाद इलाके के 25 फुटा रोड तिराहे पर अलहिंद नाम से एक छोटा सा क्लिनिक चलाने वाले डाक्टर एम. अनवर बताते हैं कि उनके अस्पताल में 24 तारीख की रात से पीड़ितों के आने सिलसिला शुरू हुआ जो अगले तीन दिनों तक चलता रहा. इन तीन दिनों में उनके अस्पताल में करीब 400 घायलों का इलाज किया गया. अनवर का दावा है कि उनके अस्पताल में भर्ती हुए ज्यादातर लोग गोली, पत्थर और चाकूबाज़ी के शिकार थे.
अनवर बताते हैं कि इससे पहले ऐसी हैवानियत उन्होंने कभी नहीं देखी थी. अस्पताल में भर्ती हुए एक आदमी को दोनों टांगों के बीच से चीर दिया गया था. ज्यादातर लोगों को ऐसी जगहों पर चाक़ू और गोली मारी गयी थी कि उनके बचने की संभावना कम रहे.
दंगा प्रभावित इलाके में कोचिंग सेंटर चलाने वाले जै़द कैफ़ी बताते हैं कि उस क्षेत्र में उनके तीन कोचिंग सेंटर हैं जिसमें छात्र और फैकल्टी में हर समुदाय के लोग शामिल हैं. दंगों से पहले तक सब कुछ सामान्य था. माहौल खराब होते ही सब बदल गया. “हमारे मकान मलिक ने हमारी सहायता करने से मना कर दिया. न उन्होंने छात्रों को अपने घर में पनाह दी और न ही उन्हें सुरक्षित घर छोड़ने में मदद की. ऐसे में किसको दोष दें? क्या कहें?”

वे कहते हैं, “दंगों के बाद से हमको कोचिंग सेंटर बंद करने की धमकी दी जा रही है. आर्थिक बहिष्कार की बातें हो रही हैं. मोहल्ले के लोग बातें करते हैं कि देखते हैं कोचिंग कैसे खुलती है. कुछ भी समझ नहीं आ रहा.”
ज़ाफराबाद इलाके में पेठा भंडार चलाने वाले मुकेश चंद बताते हैं कि इलाके की अधिकांश आबादी मुसलमानों की है. बमुश्किल चार-पांच दुकानें हैं जो हिंदुओं की हैं. आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ, न ही कभी डर लगा कि ऐसा कुछ हो सकता है. दुकान के अधिकांश ग्राहक मुसलमान थे. सबके साथ अच्छे ताल्लुकात थे लेकिन दंगों ने सब बरबाद कर दिया.
वे कहते हैं, “अचानक से लोग हिंदू और मुसलमान हो गये. अब कारोबार दोबारा खड़ा होने में कितना समय लगेगा कोई नहीं जानता. दोबारा उसी जगह पर धंधा कर पाएंगे या नहीं, ये भी नहीं जानते.”
भागीरथी विहार के अब्बास अली बताते हैं कि उनके इलाके में 25 तारीख की सुबह से दंगाइयों की भीड़ बढ़ने लगी. अचानक माहौल ख़राब हो गया. लोग अपने घरों में छिपने लगे. शाम के चार बजे के आसपास भीड़ ने उनके घर का दरवाजा तोड़ दिया. दंगाई घर में घुसकर लूटपाट करने लगे. चारों तरफ आगजनी होने लगी. उनका घर भी इसकी चपेट में आ गया. बैटरी वाले दो रिक्शे, दो मोटरसाइकिल समेत पूरा घर जलकर ख़ाक हो गया. अब्बास बताते हैं कि इस हिंसा में स्थानीय मोहल्ले पड़ोस के लोग शामिल थे. अब्बास ने अपनी एफआइआर में मोहल्ले के चार लड़कों को नामजद किया है. इनमें से दो अब भी कानून की जद से बाहर हैं.

दंगो के तीसरे दिन दिल्ली सरकार ने मुआवजे की घोषणा की थी. इस घोषणा के लिए सरकार ने अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन दिए, होर्डिंग्स लगाकर प्रचार किया गया. दिल्ली सरकार का वायदा था कि वो दंगा पीड़ितों के पांच लाख तक के नुकसान की भरपाई करेगी, लेकिन आपबीती सुनाने जुटे ये लोग बताते हैं कि उन्हें मुआवजे के नाम पर अब तक महज 25,000 की सहायता मिली है जो जले पर नमक छिड़कने जैसा है.
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