नई दिल्ली, Nit. :
दुनिया भर में इस समय हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन की भारी मांग है. कोरोना वायरस से निपटने के लिए इसे प्रभावी दवा माना जा रहा है. भारत हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन का सबसे बड़ा उत्पादक है और पूरी दुनिया उससे इसकी सप्लाई की अपील कर रही है. दो दिन पहले ही उसने अमेरिका को इस दवा के 2.9 करोड़ डोज की खेप भेजी है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसके लिए भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शुक्रिया कहा है. उधर, भारत ने कहा है कि मानवीय आधार पर वह कोरोना वायरस से बुरी तरह प्रभावित देशों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन भेजेगा.
लेकिन फ्रांस से इस दवा को लेकर आ रही खबर विशेषज्ञों को परेशान कर रही है. इस खबर के मुताबिक वहां कई मरीजों पर हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन जैसी उन दवाओं के खतरनाक अनचाहे प्रभाव यानी साइड इफेक्ट देखे गए हैं जिन्हें कोरोना वायरस से निपटने के लिए आजमाया जा रहा है. 27 मार्च से फ्रांस में ऐसे 100 ऐसे मामले दर्ज किए गए हैं. इनमें 82 मामले गंभीर श्रेणी के हैं. चार मरीजों की तो मौत भी हो चुकी है. इनमें से ज्यादातर मामले ऐसे हैं जिनमें मरीजों को या तो हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दी जा रही थी, या फिर एचआईवी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली लॉपिनाविर-रिटोनाविर. दिल की गड़बड़ी से संबंधित 43 मामलों के तार हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन से जुड़े पाए गए.
हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन कोई नई दवा नहीं है. मलेरिया, एमीबियेसिस (पेचिश) और अर्थराइटिस (जोड़ों के दर्द) जैसी बीमारयों में इसका इस्तेमाल खूब होता रहा है. इटली के वैज्ञानिक हांस एंडरसैग ने इसे 1934 में खोजा था. विश्व स्वास्थ्य संगठन की जो जरूरी दवाओं की सूची है उसमें क्लोरोक्विन शामिल है. इसे सबसे प्रभावी और सुरक्षित दवा माना जाता है. लेकिन कोरोना वायरस के इलाज में यह इंसानों पर क्या असर करेगी, सुरक्षित होगी या नहीं, इस बारे में अभी कोई परीक्षण नहीं हुए हैं. इसकी वजह यह है कि इस कोरोना वायरस के बारे में अब तक कोई जानकारी ही नहीं थी. यानी कहा जा सकता है कि संकट के समय में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन को सीधे मरीजों पर आजमाने की मजबूरी आन पड़ी है.
(Satyagraha)
Follow on Social Media